भौतिक बंधन

नीरस जीवन - है स्थापित संसार उनका ,
ना कोई अपना केवल अंधकार उनका ;
हैं क्षयकारी मात-पिता के जो...
बर्बर मान उनका - सर्वदा अपमान उनका!

जिस ममता भरी गोद ने ,,
सींचा उन्हें एक पुष्प समान ...
आज वंचित हैं इस तथ्य से वे ,,
मांग रहें मां-बाप से प्रमाण |

दिखाते वे अपनी झूठी शान ....
कर्तव्यों को लोग समझते प्रतिदान,,
मां-बाप को बेघर कर मानव ;
तूने रच दी अपनी एक अलग पहचान!

मानव आज बन बैठा दानव ...
स्वयंसेवी इस जग में कौन??
देख जरा पीछे तू मुड़
कुकर्मो से तेरे आज देवता भी मौन..

अजीब तेरी माया मानव !!!
भाइयों के बीच किया तूने एक खड़ी दीवार,,
मजबूत है इसकी श्रृंखला ऐसी...
शर्मा रहा आज चार मीनार

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