यथार्थ चिन्ह

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धन की तृष्णा..
अभिमान में लिप्त,,
अभिसार की हो चाह जब ..
तो कैसे हो रुह तृप्त..
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ओढे़ अमिट भ्रम की चादर....
कुरीतियों का बोलबाला आज ....
नासमझी की समझ से नासमझ है जग !!
और सिर पर उसके चाटुकारी का ताज |
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कलयुग का ये आलम देखो...
जलपान पहले - कर्तव्य गौन,,
भ्रष्टाचार तले संपूर्ण संसार...
निर्भिक इस  जग में ,है जी रहा आज कौन??
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कर आह्वान तू दिल से पूछ ...
भला मन के तिमिर के हैं क्या राज ??
कटु द्वार के पार देख ...
क्या उत्तम हैं ये तेरे काज???
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यह निर्बलता एक अभिशाप है !
निरुद्ध नहीं ,,तुम रहो विरुद्ध...
जो सही नहीं ..उसका रोक कर,,,
हो जाए चाहे संसार से युद्ध !

   By your lovely friend!
          🍂Anmol🍂
                                                    
                                                    

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